Wednesday, December 15, 2010

"Human Revolution" के नाम पर बरगलाने की साजिश


महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों को दुनिया भर में स्थापित करने और "बुद्धिज्म" के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए जापानी संन्यासी (भिक्षु) निचिरेन दैशोनिन (Nichiren Daishonin) द्वारा तेरहवीं शताब्दी में स्थापित की गई कमल (lotas) के सूत्र पर आधारित अवधारणा को सोका गक्कई इंटरनेशनल (SGI) द्वारा "Human Revolution" का नाम देकर जिस तरह प्रचारित किया जा रहा है वह कहीं मानवीय क्रांति के नाम पर लोगों को बरगलाने की साजिश तो नहीं?

इससे पहले "महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों का ये कैसा मजाक" शीर्षक से लेखक ने इस अवधारणा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रूप से ब्लॉग और फेसबुक पर लिखा था। (पढ़ने के लिए www.journalistnishant.blogspot.com पर link करें) उसको पढ़ने के बाद यहाँ जयपुर में SGI की इस अवधारणा से जुडे वरिष्ठ लोगों (Leaders) ने निर्णय किया कि इस अवधारणा का अनुसरण करने वालों के लिए जो अलग-अलग वर्ग समूह बनाये हुए हैं। (जैसे महिला समूह, पुरुष समूह, लड़कों का समूह और लड़कियों का समूह)। उसी के अनुसार जो जिस समूह में शामिल किया गया है वह सिर्फ उसी समूह में इस अवधारणा से सम्बंधित गतिविधियों को अंजाम दे सकेगा। दूसरे समूह से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होगा। इसी प्रकार जो जिस समूह से सम्बंधित है वह अपने समूह के सदस्यों को ही एक्टिविटी के लिए अपने घर बुला सकेगा या उनके घर जा सकेगा और उसका भी समय पहले से निर्धारित होगा। इतना ही नहीं इस दर्शन शास्त्र से जुडी कोई भी महिला या लड़की किसी पुरुष या लड़के के साथ एक्टिविटी नहीं करेगी और न ही उनसे कोई संपर्क करेगी, यही बात पुरुषों व लड़कों पर भी लागू होगी। गत रविवार को जयपुर के मानसरोवर इलाके में आयोजित समूह की बैठक में सीनियर लीडर ने सबको इस निर्णय से अवगत करवा दिया और कड़ाई से इसकी पालना करने के निर्देश भी दिए लेकिन दो दिन में ही इस निर्णय और निर्देशों को एक महिला ग्रुप लीडर ने ताक में रख दिया और मंगलवार को मानसरोवर में ही आयोजित डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग मीटिंग में इस अवधारणा से जुडे एक लड़के के घर जाकर उसको अपने साथ लेकर गई। इस महिला लीडर का तर्क यह था कि पुरुषों को इस समूह से जोड़ने के लिए वह ऐसा कर रही है। मज़े की बात तो यह है कि जब इस महिला ग्रुप लीडर से यह पूछा गया कि आपने इस सिद्धांत पर आधारित किन बातों को अपने जीवन में उतारा, तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। वास्तविकता भी यही है कि यहाँ इस दर्शन शास्त्र से जुडे ये लोग अभी न तो इस सिद्धांत को पूरी तरह जानते हैं और न ही उनको अपने जीवन में उतारना चाहते हैं, इसका सबसे बड़ा उदहारण वह महिला ग्रुप लीडर हैं जिनको इस प्रेक्टिस में दो साल हो गए और वह अब तक अपने जीवन में कोई बदलाव और परिवर्तन नहीं ला सकी। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब सीनियर लीडर्स या ग्रुप लीडर ही खुद में परिवर्तन या बदलाव नहीं ला सके तो वे दूसरों को अधूरा ज्ञान देकर क्या दिशा देंगे। इतना ही नहीं ग्रुप लीडर महिला का तो यहाँ तक कहना है कि जब भी घरमें बैठी बोर हो रही होती हूँ तो अपना टाइम पास करने के लिए किसी के यहाँ प्रेक्टिस के लिए चली जाती हूँ या किसी को अपने घर बुला लेती हूँ।

यहाँ पहले यह साफ कर देना जरुरी है कि "सोका गक्कई" क्या है? निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित बुद्ध महायान की एक शाखा "सोका गक्कई" वस्तुत: एक ऐसा सिद्धांत या धार्मिक आन्दोलन है जिसके जरिये एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना है जिसकी बौद्ध धर्म में विशेष आस्था हो। इस सिद्धांत या धार्मिक आन्दोलन का जनक जापानी संन्यासी (भिक्षु) निचिरेन दैशोनिन (Nichiren Daishonin) को माना जाता है, जिन्होंने इसे स्थापित किया। विश्व के 192 देशों और राज्यों में सोका गक्कई इंटरनेशनल (SGI) के करीब 12 लाख सदस्य हैं। ऐसा इस संस्था का दावा है। विलुप्त हो चुके निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित "सोका गक्कई" को 1930 में जापानी शिक्षक त्सुनेसबुरो माकीगुची (Tsunesaburo Makiguchi) ने संस्थापित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सरकार समर्थित राज्य शिन्तो (Shinto) के विरोध के कारण इस संगठन को दबा दिया और "आपराधिक सोच" के आरोपों में माकीगुची को जोसी तोडा (josei toda) व अन्य सोका गक्कई नेताओं सहित 1943 में गिरफ्तार कर लिया। नवम्बर 1944 में जेल में ही कुपोषण के कारण माकीगुची का 73 साल की उम्र में देहांत हो गया। जापान में हुए पहले परमाणु हमले से कुछ सप्ताह पहले जुलाई 1945 में तोडा को रिहा किया गया। आने वाले वर्षों में तोडा संगठन के पुनर्निर्माण में जुट गए। 1958 में अपने निधन से पहले करीब 7,50000 लोगों को उन्होंने इसका सदस्य बना लिया था।

सोका गक्कई इंटरनेशनल (SGI) को 1975 में दैसाकू इकेदा (Daisaku Ikeda) ने संस्थापित किया, जो कि इसके अध्यक्ष हैं। उन्होंने संगठन का चरित्र चित्रण करने और इसे प्रसिद्द करने के लिए निचिरेन बुद्धिज्म के पेशेवर लोगों का समूह बनाकर उनकी सहायता से इस दर्शन शास्त्र को शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन के रूप में प्रचारित करने का काम किया, जो अभी भी जारी है। SGI का यह विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन निचिरेन बुद्धिज्म की शिक्षा पर आधारित है। यह धारणा जड़वत विचारों से सम्बंधित "मानवीय क्रांति" (Human Revolution) या कह सकते हैं कि मानव में महत्वपूर्ण परिवर्तन पर बल देती है और इस कायापलट के लिए गोपनीय तरीके से निरंतर बौद्धधर्मी अभ्यास की प्रक्रिया अपनाने की शिक्षा दी जाती है। शायद इसीलिए इससे जुडे लोग समाज और मीडिया से कतराते हैं। निचिरेन बुद्धिज्म से जुडे लोगों का विश्वास है कि इस प्रक्रिया से न सिर्फ चरित्र विकास और खुद को पूर्ण संतुष्टि मिलती है, बल्कि इसमें समाज की भी बेहतरी है। उनका मानना है कि जीवन में किसी भी समस्या पर जीत पा लेने पर जिस परम खुशी का अनुभव होता है वह सिर्फ इसमें है। छोटे समूह, मुहल्ला और स्थानीय समूह की बैठक, जिसमें परिचर्चा होती है, संगठन की परंपरा का ही हिस्सा है जो SGI की मेम्बरशिप ग्रोव्थ के लिए उत्तरदायी है. ऐसा इससे जुड़े लोगों का मानना है।
यहाँ सवाल किसी अवधारणा या सिद्धांत के विरोध का नहीं बल्कि यह है कि जब यह बौद्धधर्म को प्रचारित और संस्थापित करने का आन्दोलन है तो फिर इसे मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा क्यों कहा जाता है? क्यों इसके जरिये लोगों को काल्पनिक उदहारण देकर उनका माइंड वाश किया जा रहा है? क्यों नहीं इससे जुडने वाले लोगों को स्पष्ट किया जाता कि शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नाम पर यह सब विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन का एक हिस्सा है? "Human Revolution" का नाम देकर जिस तरह इसको प्रचारित किया जा रहा है वह मानवीय क्रांति वास्तव में एक ऐसे समुदाय के निर्माण करने की प्रक्रिया है जिसमें बौद्ध धर्म के प्रति विशेष आस्था हो। अगर यह मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा ही है तो क्यों जापान में जहाँ इसके सबसे ज्यादा अनुयायी हैं, वहां "सोका गक्कई" लीडर्स को जेल में डाल दिया गया और उन पर आपराधिक सोच या विचारों का आरोप लगा? इससे हट कर बात करें तो इन सवालों का जवाब किसके पास है कि जो लोग खुद में इस सिद्धांत के अनुरूप परिवर्तन नहीं ला सके या जिनके लिए यह प्रेक्टिस मात्र टाइम पास है या जो इसके नियमों की अनदेखी करते हैं, उन्हें किस आधार पर लीडर या ग्रुप लीडर बना दिया जाता है। जब पूरे विश्व में संगठन के सदस्यों के लिए समान नियम हैं तो फिर जयपुर में उन नियमों की अनदेखी क्यों? क्यों नहीं ऐसे लोगों को संगठन से निष्कासित किया जाता जिनके लिए यह सिर्फ टाइम पास प्रक्रिया है और नियम या सिद्धांत से उनको कोई सरोकार नहीं, मात्र दिखावे के लिए जो संगठन से जुड़े हुए हैं. और जिनको इस अवधारणा का ज्ञान नहीं उन्हें किस आधार पर लीडर या ग्रुप लीडर बना दिया जाता है? क्या मात्र इसलिए कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को "Human Revolution" के नाम पर संगठन से जोड़ने का काम कर सकें? ऐसे ही अनेक सवाल है जिनका जवाब इस संगठन से जुड़े लोगों के पास नहीं है. इसीलिए लगता है कि कहीं "Human Revolution" के नाम पर लोगों को बरगलाने की यह कोई साजिश तो नहीं.....

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