Tuesday, May 3, 2011

क्या बदतमीज़ी और बेहूदगी देना सिखा रहा है बुद्धिज्म?


बुद्धिज्म और उसके सिद्धांत वैसे तो जीवन में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं बशर्ते कि उनकी पालना नियमानुसार की जाए। सोका गक्कई का निचिरेन बुद्धिज्म भी एक ऐसा ही सिद्धांत है जिसको अगर सही ढंग से जीवन में अपनाया जाए तो जीवन में काफी बदलाव आ सकता है, लेकिन यहाँ जयपुर में इससे जुड़े सीनियर लीडर्स ने इसके नियम और तौर तरीकों को जिस तरह से अपनी मर्ज़ी अनुसार बदला है उससे इस सिद्धांत की मौलिकता के लिए खतरा पैदा हो गया है। तीन साल से इस सिद्धांत से जुडे रहने के बाद भी इसके एक ग्रुप लीडर के अन्दर कोई परिवर्तन नहीं आया। शुरू में बताया जाता है कि ये एक सिद्धांत है। बाद में पता चलता है कि वास्तव में यह एक ऐसे समुदाय या समाज की स्थापना की प्रक्रिया है जो सिर्फ बुद्धिज्म में आस्था रखता हो। इस सिद्धांत के अनुसार पुरुषों, महिलाओं और युवा लड़के-लड़कियों के अलग-अलग समूह होना चाहिए और उनकी एक्टिविटी भी उसी समूह में होनी चाहिए, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है, यहाँ कोई भी किसी भी समूह में एक्टिविटी करे तो मना करने वाला कोई नहीं। महीने में सिर्फ दो मीटिंग होनी चाहिए, वो भी पूर्व निर्धारित, लेकिन यहाँ सप्ताह में तीन-तीन मीटिंग होती हैं, बड़ी मीटिंग की तैयारी के नाम पर और वो भी अचानक. रात आठ बजे तक इससे जुडे लोगो को, खासकर महिलाओं और लड़कियों को अपने घर पहुँच जाना चाहिए, लेकिन कुछ दिन पहले एक सीनियर लीडर ने अचानक शाम को साढ़े सात बजे मानसरोवर में एक लीडर के घर मीटिंग बुलाई और यह मीटिंग रात को पौने नौ बजे तक चली. सवाल उठता है कि इससे जुडे सीनियर लीडर्स इस सिद्धांत का मखौल बना कर इससे जुडे लोगों को किस दिशा में ले जा रहे हैं। पहले भी इनकी गतिविधियों पर अंगुली उठाई जा चुकी है। इस सिद्धांत के नाम पर लोगो का माइंड वाश किया जा रहा है। जो अंग्रेज़ी जानता हो वो ही इस सिद्धांत से जुड़ सकता है, ये कौनसा नियम है? इससे जुडे लोगों को अगर सिद्धांत के मूल रूप से अवगत होने की बात कही जाए तो वह बदतमीज़ी और बेहूदगी पर उतारू हो जाते हैं। स्थिति यहाँ तक है कि इससे जुडी कुछ महिलाएं इसके लिए अपना परिवार, अपने सब रिश्ते खत्म कर सकती हैं, लेकिन इसको करेंगी अपनी मनमर्जी के अनुसार। अगर ऐसी महिलाओं से बात की जाए तो वह हकीकत स्वीकारने की जगह मनगढ़ंत कहानियां-किस्से बना लेंगी, सही बात कहने या समझाने वाले पर बेबुनियाद आरोप लगाना शुरू कर देंगी. अगर बुद्धिज्म से जुड़कर इन्सान अपने व्यहवार और आचरण के साथ अपनी वाणी पर संयम नहीं रख सकता तो फिर ऐसे बुद्धिज्म का क्या फायदा? और ये हाल अगर इस सिद्धांत से जुडी किसी लीडर का हो तो ये अपने आप में बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है. जो खुद गलत करे वो किसी को सही करने की शिक्षा कैसे दे सकते हैं. एक और सवाल कि इस गतिविधि के लिए इतना समर्पण क्यों? क्या लालच है? इसके संचालन के लिए आर्थिक आवश्यकताएं कहाँ से पूरी होती हैं? क्यों अपने धर्म का तिरस्कार कर इसके पीछे अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार हैं इससे जुडे लोग? सच का सामना करने से क्यों कतराते हैं इससे जुडे लोग? इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं. जब इसको अपनाकर भी इन्सान अपने व्यहवार और गलत आदतों में परिवर्तन न ला सके. बल्कि अपने से जुडे लोगों को तकलीफ पहुंचाये, तो फिर बुद्धिज्म उस इन्सान के लिए कैसे लाभदायक हो सकता है?