Thursday, December 23, 2010

समर्पण



"पथ से भटका, मन से भटका,
फिर से संभला, अब राह वही पाने को,
जिस राह चले थे साथ कभी,
अब साथ वही पाने को,
उस मृगतृष्णा के चक्रव्यूह से,
बाहर निकलकर जाना,
अपना होता है दिल से अपना,
गैर रहे बेगाना,
जतन किये लाखों ही मैंने,
तुम सा कोई पाऊं,
नहीं मिला कोई भी अब तक,
अब तुम जैसा बन जाऊं,
चाह यही बनके तुम जैसा,
जीवन भर साथ निभाऊं,
तेरे पथ के काँटों को भी,
अब मैं फूल बनाता जाऊं,
मत रखना अब भ्रम को दिल में,
अब साथ कभी न छूटे,
जिस राह चले थे साथ कभी,
वो राह कभी न छूटे...."

Friday, December 17, 2010

द्वन्द


वर्तमान में बैठा,
कल्पना और यथार्थ की,
पारस्परिक तुलना कर रहा हूँ,
आज खुद अपने आपसे,
यह द्वन्द कर रहा हूँ.....
यथार्थ की भयानकता,
विवश करती है मुझे,
नतमस्तक होने को अपने समक्ष,
न हो ऐसा कोशिश कर रहा हूँ,
आज खुद अपने आपसे,
यह द्वन्द कर रहा हूँ.....
कल्पना के घोड़े पर सवार हो,
दूर गगन में ले जाने को,
मेरा पागल मन आतुर है,
आकाश की बुलंदियों पर पहुँचने की,
नाकाम कोशिश कर रहा हूँ
आज खुद अपने आपसे,
यह द्वन्द कर रहा हूँ.....

Wednesday, December 15, 2010

"Human Revolution" के नाम पर बरगलाने की साजिश


महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों को दुनिया भर में स्थापित करने और "बुद्धिज्म" के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए जापानी संन्यासी (भिक्षु) निचिरेन दैशोनिन (Nichiren Daishonin) द्वारा तेरहवीं शताब्दी में स्थापित की गई कमल (lotas) के सूत्र पर आधारित अवधारणा को सोका गक्कई इंटरनेशनल (SGI) द्वारा "Human Revolution" का नाम देकर जिस तरह प्रचारित किया जा रहा है वह कहीं मानवीय क्रांति के नाम पर लोगों को बरगलाने की साजिश तो नहीं?

इससे पहले "महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों का ये कैसा मजाक" शीर्षक से लेखक ने इस अवधारणा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रूप से ब्लॉग और फेसबुक पर लिखा था। (पढ़ने के लिए www.journalistnishant.blogspot.com पर link करें) उसको पढ़ने के बाद यहाँ जयपुर में SGI की इस अवधारणा से जुडे वरिष्ठ लोगों (Leaders) ने निर्णय किया कि इस अवधारणा का अनुसरण करने वालों के लिए जो अलग-अलग वर्ग समूह बनाये हुए हैं। (जैसे महिला समूह, पुरुष समूह, लड़कों का समूह और लड़कियों का समूह)। उसी के अनुसार जो जिस समूह में शामिल किया गया है वह सिर्फ उसी समूह में इस अवधारणा से सम्बंधित गतिविधियों को अंजाम दे सकेगा। दूसरे समूह से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होगा। इसी प्रकार जो जिस समूह से सम्बंधित है वह अपने समूह के सदस्यों को ही एक्टिविटी के लिए अपने घर बुला सकेगा या उनके घर जा सकेगा और उसका भी समय पहले से निर्धारित होगा। इतना ही नहीं इस दर्शन शास्त्र से जुडी कोई भी महिला या लड़की किसी पुरुष या लड़के के साथ एक्टिविटी नहीं करेगी और न ही उनसे कोई संपर्क करेगी, यही बात पुरुषों व लड़कों पर भी लागू होगी। गत रविवार को जयपुर के मानसरोवर इलाके में आयोजित समूह की बैठक में सीनियर लीडर ने सबको इस निर्णय से अवगत करवा दिया और कड़ाई से इसकी पालना करने के निर्देश भी दिए लेकिन दो दिन में ही इस निर्णय और निर्देशों को एक महिला ग्रुप लीडर ने ताक में रख दिया और मंगलवार को मानसरोवर में ही आयोजित डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग मीटिंग में इस अवधारणा से जुडे एक लड़के के घर जाकर उसको अपने साथ लेकर गई। इस महिला लीडर का तर्क यह था कि पुरुषों को इस समूह से जोड़ने के लिए वह ऐसा कर रही है। मज़े की बात तो यह है कि जब इस महिला ग्रुप लीडर से यह पूछा गया कि आपने इस सिद्धांत पर आधारित किन बातों को अपने जीवन में उतारा, तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। वास्तविकता भी यही है कि यहाँ इस दर्शन शास्त्र से जुडे ये लोग अभी न तो इस सिद्धांत को पूरी तरह जानते हैं और न ही उनको अपने जीवन में उतारना चाहते हैं, इसका सबसे बड़ा उदहारण वह महिला ग्रुप लीडर हैं जिनको इस प्रेक्टिस में दो साल हो गए और वह अब तक अपने जीवन में कोई बदलाव और परिवर्तन नहीं ला सकी। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब सीनियर लीडर्स या ग्रुप लीडर ही खुद में परिवर्तन या बदलाव नहीं ला सके तो वे दूसरों को अधूरा ज्ञान देकर क्या दिशा देंगे। इतना ही नहीं ग्रुप लीडर महिला का तो यहाँ तक कहना है कि जब भी घरमें बैठी बोर हो रही होती हूँ तो अपना टाइम पास करने के लिए किसी के यहाँ प्रेक्टिस के लिए चली जाती हूँ या किसी को अपने घर बुला लेती हूँ।

यहाँ पहले यह साफ कर देना जरुरी है कि "सोका गक्कई" क्या है? निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित बुद्ध महायान की एक शाखा "सोका गक्कई" वस्तुत: एक ऐसा सिद्धांत या धार्मिक आन्दोलन है जिसके जरिये एक ऐसे समुदाय का निर्माण करना है जिसकी बौद्ध धर्म में विशेष आस्था हो। इस सिद्धांत या धार्मिक आन्दोलन का जनक जापानी संन्यासी (भिक्षु) निचिरेन दैशोनिन (Nichiren Daishonin) को माना जाता है, जिन्होंने इसे स्थापित किया। विश्व के 192 देशों और राज्यों में सोका गक्कई इंटरनेशनल (SGI) के करीब 12 लाख सदस्य हैं। ऐसा इस संस्था का दावा है। विलुप्त हो चुके निचिरेन बुद्धिज्म पर आधारित "सोका गक्कई" को 1930 में जापानी शिक्षक त्सुनेसबुरो माकीगुची (Tsunesaburo Makiguchi) ने संस्थापित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सरकार समर्थित राज्य शिन्तो (Shinto) के विरोध के कारण इस संगठन को दबा दिया और "आपराधिक सोच" के आरोपों में माकीगुची को जोसी तोडा (josei toda) व अन्य सोका गक्कई नेताओं सहित 1943 में गिरफ्तार कर लिया। नवम्बर 1944 में जेल में ही कुपोषण के कारण माकीगुची का 73 साल की उम्र में देहांत हो गया। जापान में हुए पहले परमाणु हमले से कुछ सप्ताह पहले जुलाई 1945 में तोडा को रिहा किया गया। आने वाले वर्षों में तोडा संगठन के पुनर्निर्माण में जुट गए। 1958 में अपने निधन से पहले करीब 7,50000 लोगों को उन्होंने इसका सदस्य बना लिया था।

सोका गक्कई इंटरनेशनल (SGI) को 1975 में दैसाकू इकेदा (Daisaku Ikeda) ने संस्थापित किया, जो कि इसके अध्यक्ष हैं। उन्होंने संगठन का चरित्र चित्रण करने और इसे प्रसिद्द करने के लिए निचिरेन बुद्धिज्म के पेशेवर लोगों का समूह बनाकर उनकी सहायता से इस दर्शन शास्त्र को शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन के रूप में प्रचारित करने का काम किया, जो अभी भी जारी है। SGI का यह विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन निचिरेन बुद्धिज्म की शिक्षा पर आधारित है। यह धारणा जड़वत विचारों से सम्बंधित "मानवीय क्रांति" (Human Revolution) या कह सकते हैं कि मानव में महत्वपूर्ण परिवर्तन पर बल देती है और इस कायापलट के लिए गोपनीय तरीके से निरंतर बौद्धधर्मी अभ्यास की प्रक्रिया अपनाने की शिक्षा दी जाती है। शायद इसीलिए इससे जुडे लोग समाज और मीडिया से कतराते हैं। निचिरेन बुद्धिज्म से जुडे लोगों का विश्वास है कि इस प्रक्रिया से न सिर्फ चरित्र विकास और खुद को पूर्ण संतुष्टि मिलती है, बल्कि इसमें समाज की भी बेहतरी है। उनका मानना है कि जीवन में किसी भी समस्या पर जीत पा लेने पर जिस परम खुशी का अनुभव होता है वह सिर्फ इसमें है। छोटे समूह, मुहल्ला और स्थानीय समूह की बैठक, जिसमें परिचर्चा होती है, संगठन की परंपरा का ही हिस्सा है जो SGI की मेम्बरशिप ग्रोव्थ के लिए उत्तरदायी है. ऐसा इससे जुड़े लोगों का मानना है।
यहाँ सवाल किसी अवधारणा या सिद्धांत के विरोध का नहीं बल्कि यह है कि जब यह बौद्धधर्म को प्रचारित और संस्थापित करने का आन्दोलन है तो फिर इसे मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा क्यों कहा जाता है? क्यों इसके जरिये लोगों को काल्पनिक उदहारण देकर उनका माइंड वाश किया जा रहा है? क्यों नहीं इससे जुडने वाले लोगों को स्पष्ट किया जाता कि शांति, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नाम पर यह सब विश्व व्यापी बौद्धधर्मी आन्दोलन का एक हिस्सा है? "Human Revolution" का नाम देकर जिस तरह इसको प्रचारित किया जा रहा है वह मानवीय क्रांति वास्तव में एक ऐसे समुदाय के निर्माण करने की प्रक्रिया है जिसमें बौद्ध धर्म के प्रति विशेष आस्था हो। अगर यह मात्र एक सिद्धांत या अवधारणा ही है तो क्यों जापान में जहाँ इसके सबसे ज्यादा अनुयायी हैं, वहां "सोका गक्कई" लीडर्स को जेल में डाल दिया गया और उन पर आपराधिक सोच या विचारों का आरोप लगा? इससे हट कर बात करें तो इन सवालों का जवाब किसके पास है कि जो लोग खुद में इस सिद्धांत के अनुरूप परिवर्तन नहीं ला सके या जिनके लिए यह प्रेक्टिस मात्र टाइम पास है या जो इसके नियमों की अनदेखी करते हैं, उन्हें किस आधार पर लीडर या ग्रुप लीडर बना दिया जाता है। जब पूरे विश्व में संगठन के सदस्यों के लिए समान नियम हैं तो फिर जयपुर में उन नियमों की अनदेखी क्यों? क्यों नहीं ऐसे लोगों को संगठन से निष्कासित किया जाता जिनके लिए यह सिर्फ टाइम पास प्रक्रिया है और नियम या सिद्धांत से उनको कोई सरोकार नहीं, मात्र दिखावे के लिए जो संगठन से जुड़े हुए हैं. और जिनको इस अवधारणा का ज्ञान नहीं उन्हें किस आधार पर लीडर या ग्रुप लीडर बना दिया जाता है? क्या मात्र इसलिए कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को "Human Revolution" के नाम पर संगठन से जोड़ने का काम कर सकें? ऐसे ही अनेक सवाल है जिनका जवाब इस संगठन से जुड़े लोगों के पास नहीं है. इसीलिए लगता है कि कहीं "Human Revolution" के नाम पर लोगों को बरगलाने की यह कोई साजिश तो नहीं.....

Tuesday, December 14, 2010

बिखरने के लिए...


उनके सपनों को क्यों बसाऊं आँखों में,
बिखरने के लिए,
अपने ही सपने ही क्या कम हैं,
चूर-चूर होने के लिए,
न उतर सका जो खरा उनकी उम्मीदों पे,
खता मेरी थी उनकी नहीं,
अहसास है इसका इस कदर दिल में,
तड़पने के लिए,
बसाना चाहूं सपनों की दुनिया,
बसा नहीं सकता,
फिर से बिखरने के लिए....

Sunday, December 12, 2010

बाल कलाकार प्रेरक






कहते हैं कि पूत के पैर पालने में ही नज़र आ जाते हैं। बाल कलाकार प्रेरक मिश्रा के बचपन की चंद तस्वीरें...

Friday, December 10, 2010

बाल कलाकार प्रेरक मिश्रा




बाल कलाकार प्रेरक मिश्रा द्वारा बनाई गईं कुछ पेंटिंग्स.
अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध करने की दिशा में एक कदम...

Wednesday, December 8, 2010

प्रेरक मिश्रा अब हिंदी फिल्म "जनानी ड्योढ़ी " में....


मीडिया चक्र सिने विज़न एवं औरा विज़न के संयुक्त बैनर तले प्रख्यात साहित्यकार स्व. यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' की कालजेयी कृति पर बनने वाली हिंदी फीचर फिल्म "जनानी ड्योढ़ी" में प्रेरक मिश्रा बाल कलाकार के रूप में प्रमुख भूमिका में नज़र आयेंगे. फिल्म की शूटिंग नए साल के प्रारंभ में शुरू होगी. फिल्म के निर्देशक राजेश सेठ हैं. राजस्थान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म में रजवाड़ों के समय "जनानी ड्योढ़ी" में महिलाओं की मार्मिक दशा का चित्रण रूपहले परदे पर साकार होगा।

Sunday, December 5, 2010

मोहब्बत


है आज दूर मुझसे कल मेरे पास होगी,
मेरी ये मोहब्बत बस मेरे पास होगी,
चाहें सितम जो दे दो, ग़म लाख मुझको दे दो,
फिर भी मेरी मोहब्बत कम तो कभी न होगी,
है दिल दीवाना मेरा, हंसके सहेगा ग़म ये,
जितना परेशां होगा, चाहत भी तो बढ़ेगी,
जो ज़ख्म भी मिले तो, दिल में है उनको रखा,
सहता रहूँगा हरदम, मोहब्बत न बदनाम होगी,
है प्यार में वफ़ा ही, जीने का इक सहारा,
जिंदगी तो अपनी, अब इसके नाम कर दी,
अब शिकवा नहीं है कोई, न रही कोई शिकायत,
मोहब्बत पे आज हमने, अपनी वफ़ा है लिख दी

Friday, December 3, 2010

महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों का ये कैसा मजाक





महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों की पालना करते हुए उनके कुछ अत्यंत निकट रहे लोगों ने कुछ अवधारणायें स्थापित की, जिनका अनुसरण आज देश केविभिन्न शहरों में अनेक लोग कर रहे हैं. लेकिन उन अवधारणाओं को पूरी तरह समझे बिना जिस तरह से महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों को अपने ढंग से प्रचारित किया जा रहा है और लोगों को अधूरा ज्ञान परोस कर दिग्भ्रमित किया जा रहा है वह बड़ा ही आश्चर्यजनक है. महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित इस अवधारणाओं में से एक है कमल (lotas) के सूत्र पर आधारित अवधारणा जिसे इन अनुयायियों ने नाम दिया है "बुद्धिज्म" (Buddhism). जिस तरह गंदगी में होने के बावजूद कमल का फूल उससे ऊपर निकल कर खिलता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को इसमें सिखाया जाता है कि किस तरह समाज में व्याप्त गंदगी और बुराइयों से बचकर ऊपर निकला जा सकता है.

कमल के फूल को आठ शुभ प्रतीक में से एक माना गया है. इस अवधारणा से जुड़े लोग महात्मा बुद्धके कमल पर बैठे या हाथ में कमल लिए हुए रूप कि कल्पना करते हैं. इस फूल को दिल की तरह मन गया है और इसमें रंगों को भी महत्व दिया गया है. जैसे सफेद: मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता, लाल: हृदय करुणा और प्रेम, नीला (ब्लू): बुद्धि और इंद्रियों पर नियंत्रण, गुलाबी: ऐतिहासिक बुद्ध और बैंगनी: रहस्यवाद. हालाँकि कमल के सूत्र को लेकर चीन, जापान और कोरिया जहाँ सर्वाधिक अनुयायी हैं, एकमत नहीं हैं. इतिहासकारों का मानना है कि लोटस सूत्र के मूल पाठ खो गए लेकिन भिक्षु Kamarajiva द्वारा चीनी में 406 CE में किये गए एक अनुवाद को सही माना जा सकता है. मूल रूप से लोटस सूत्र संस्कृत सूत्र है या Saddharma-pundarika सूत्र, यह बौद्ध धर्म के कुछ स्कूलों में विश्वास की बात है कि सूत्र ऐतिहासिक बुद्ध के शब्द हैं. हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना सूत्र 1 या 2 शताब्दी CE में लिखा गया था.

"लोटस सूत्र " की अवधारणा को किसी भी धर्म का कोई भी महिला, पुरुष, लड़का, लड़की अपना सकता है. इसमें कोई बुराई भी नहीं कि अगर किसी माध्यम से सब एकत्र और संगठित होते हैं तो, लेकिन "लोटस सूत्र " की इस अवधारणा का अनुसरण करने वाले अनुयाईयों ने अपने खुद के नियम बना रखे हैं. साथ ही इसे प्रचारित करने और इसमें लोगों का विश्वास कायम रखने के लिए झूठे उदहारण पेश किये जाते हैं. दिल्ली में इस अवधारणा का अनुसरण करने वालों ने सबके लिए अलग-अलग वर्ग समूह बना रखे हैं. जैसे महिला समूह, पुरुष समूह, लड़कों का समूह और लड़कियों का समूह. इसमें यह साफ है की अवधारणा का अनुसरण करने वाले को जिस समूह में शामिल किया गया है वह सिर्फ उसी समूह में इस अवधारणा से सम्बंधित गतिविधियों को अंजाम दे सकेगा. दूसरे समूह से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होगा. इसी प्रकार जो जिस समूह से सम्बंधित है वह अपने समूह के सदस्यों को ही एक्टिविटी के लिए अपने घर बुला सकेगा या उनके घर जा सकेगा और उसका भी समय पहले से निर्धारित होगा. हर माह दो बार समूह की सामूहिक बैठक होंगी, जिसमें चर्चा के साथ ही इस अवधारणा का अनुसरण करने के बाद जीवन में आये परिवर्तन के अनुभव को बताया जाता है और ये अनुभव बताते है पुराने अनुयायी. साथ ही अवधारण से जुड़े पुराने और प्रमुख लोग अनुसरण करन वालों को जीवन में सत्य बोलने, छल कपट नहीं करने, किसी को नुकसान नहीं पहुँचने, दिखावे से बचने, हिंसा व क्रोध का त्याग करने, वाणी का संयम रखने और दूसरों की भावनाओं का आदर करने की सीख भी देते हैं जो कि महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित इस अवधारणा के अनुकूल है. अनुयायी इस सबको ईमानदारी और सच्ची श्रद्धा से अपने जीवन में अमल करें यही इस अवधारणा का मूल उद्देश्य है. इन सबको अपने वास्तविक जीवन में उतार कर ही मनुष्य अपनी मंजिल तक आसानी से पहुँच सकता है. बशर्ते वह" लोटस सूत्र " की अवधारणा को सही मायनों में अपने जीवन चरित्र में जिये. इस अवधारणा का अनुसरण करने वाला यदि नियमों का उल्लंघन या मनमानी करता है तो उसे निष्काषित कर दिया जाता है, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं.

खैर... यहाँ हम बात कर रहें हैं महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित "लोटस सूत्र " की अवधारणा का अनुसरण करने वालों की, जो किस तरह से अपने अनुसार नियम स्थापित कर महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित इस महान दर्शन का मखौल उड़ा रहे हैं. एक और सवाल उठता है कि कहीं यह कोई सोची समझी साजिश तो नहीं धर्म परिवर्तन की. बिलकुल उसी तरह जैसे देश के अनेक हिस्सों में लोगों को दिग्भ्रमित कर धर्म परिवर्तन करने के कई मामले पहले भी उजागर हुए है. यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि इस अवधारणा से जुड़े लोगो को भी अपने घर में इस अवधारणा से सम्बंधित मंदिर जैसा कोई स्थान बनाने के प्रेरित किया जाता है और उसकी पालना भी कराई जाती है. साथ ही उनको कहा जाता है कि यह एक अवधारणा मात्र है कोई धर्म नहीं.

अब हम बात करेंगे कि इस अवधारणा का अनुसरण करने वाले किस कदर इस महान दर्शन का मखौल बना रहे हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को रौंदकर कैसे उन्हें दिग्भ्रमित कर रहे हैं. दिल्ली में इस अवधारणा का अनुसरण कैसे होता है और क्या नियम अपनाये गए हैं. किन बातों पर अमल करना चाहिए यह सब ऊपर बताया जा चुका है. "लोटस सूत्र " की अवधारणा का अनुसरण जयपुर में कैसे किया जा रहा है उसको समझ कर आप खुद निर्णय करें कि महात्मा बुद्ध या किसी भी महान व्यक्ति के सिद्धांतों पर आधारित किसी भी अवधारणा का मखौल बनाना कहाँ तक उचित है? जयपुर में भी दिल्ली की तर्ज पर अलग-अलग वर्ग समूह बने हुए हैं. यहाँ भी अनुसरण करने वालों को जीवन में सत्य बोलने, छल कपट नहीं करने, किसी को नुकसान नहीं पहुँचने, दिखावे से बचने, हिंसा व क्रोध का त्याग करने, वाणी का संयम रखने और दूसरों की भावनाओं का आदर करने की सीख दी जाती है. सामूहिक बैठक भी होती हैं, जिसमें चर्चा के साथ ही इस अवधारणा का अनुसरण करने के बाद जीवन में आये परिवर्तन के अनुभव भी बताये जाते हैं, पुराने अनुयाईयों द्वारा जिनको इन बैठकों से पहले समझाया जाता है कि क्या बोलना है. इन बैठकों में जो अनुभव बताये जाते हैं वो सिर्फ काल्पनिक, सच्चाई से उनका कोई वास्ता नहीं होता. इतना ही नहीं जब मर्ज़ी हो बैठक हो जाती है. न बैठक का समय निर्धारित होता है न एक्टिविटी का, सब सुविधानुसार. एक्टिविटी के लिए कोई भी किसी के घर जा सकता है, अगर किसी अनुयायी के घरवालों को आपत्ति हो तो घर में अशांति, अनुयाईयों को इस कदर दिग्भ्रमित कर दिया जाता है कि ऐसी स्थिति में वह घर परिवार छोड़ने पर उतारू हो जाता है लेकिन "लोटस सूत्र " नहीं. यह बात सिद्ध की जा सकती है.

इसके अलावा पुरुष या लड़का किसी अन्य महिला या लड़की के साथ जाकर किसी तीसरे अनुयायी के घर एक्टिविटी कर सकता है. मन में आये जब कहीं भी एक्टिविटी कर सकता है चाहे दो मिनट और चाहे तो दो घंटे. सामूहिक बैठक की तैयारियों के नाम पर अनेक बैठक होती हैं जिसमें पुराने अनुयाईयों को ये बताया जाता है कि उन्हें अपने अनुभव के नाम पर क्या बोलना है. वो भी सिर्फ काल्पनिक और सच्चाई से परे. यहाँ अनेक अनुयायी ऐसे हैं जिनको दो साल से अधिक हो गए इस अवधारणा का अनुसरण करते, लेकिन आज तक उन्होंने सत्य बोलने, छल कपट नहीं करने, किसी को नुकसान नहीं पहुँचने, दिखावे से बचने, हिंसा व क्रोध का त्याग करने, वाणी का संयम रखने और दूसरों की भावनाओं का आदर करने जैसी किसी भी बात को अपने जीवन में नहीं उतारा है, ऐसे लोगों के लिए इस अवधारणा को प्रचारित व प्रसारित करने वालों के पास शायद ही कोई जवाब होगा, इतना ही नहीं ऐसे लोगों को ही किसी समूह का प्रमुख बनाया जाता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज हर धर्म व समाज मीडिया से नजदीकियां चाहता है तो फिर "लोटस सूत्र " से जुड़े लोग क्यों मीडिया या आम लोगों से बात करने में कतराते हैं. सबसे बड़ी बात कि इस अवधारणा में अधिकतर ऐसे लोगो को जोड़ा जाता है जो आर्थिक, मानसिक या शारीरिक रूप से से कमजोर हों. उन्हें बताया जाता है कि इस अवधारणा से जुड़ने के बाद उनकी ये सब परेशानी दूर हो जाएगी, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है. सवाल यह उठता है कि किसी एक ही अवधारणा को अनुसरण करने के लिए अलग-अलग नियम क्यों? क्यों मीडिया और आम लोगों से कतराते हैं? क्यों ऐसे लोग आज भी समूह प्रमुख बने हुए हैं जिन्होंने आज तक अवधारणा के किसी भी तौर-तरीकों को नहीं अपनाया? क्या ये लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने की पहल है? या फिर इस सबके कारण किसी का घर बर्बाद हो? इन सब सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. खुद इस अवधारणा से जुड़े ज्ञाताओं के पास भी नहीं.

( यह लेख "लोटस सूत्र " की अवधारणा से जुडी एक समूह प्रमुख द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है, उनका खुद का मानना है कि स्वयं उनके जीवन में कुछ नहीं बदला, लेकिन दिखावे के लिए कहना पड़ता है कि इस अवधारणा को अपनाने के बाद उनको बहुत फायदा हुआ और वह इसको छोड़ना चाहती हैं क्योंकि इसके कारण उनको जीवन में बहुत कुछ खोना पड़ा, लेकिन छोड़ने पर अनेक प्रकार की बातें हो सकती जो उनके निजी जीवन से जुडी हैं और जिसके बारे में वह इस अवधारणा से जुड़े अपने वरिष्ठ लोगों से कई बार चर्चा कर चुकी हैं, जो वह नहीं चाहती )

Thursday, December 2, 2010

गम


गम
आज तो जिंदा हैं लेकिन,
कल हमारी लाश पर रोयेंगे वो भी,
हँसते हैं जो आज हम पर,
कल तुम्हारे साथ ही रोयेंगे वो भी...
दे दिए जिसने भी हमको,
प्यार में गम है गिला उनसे नहीं,
खुद ही तड़पेंगे वो कभी तो,
प्यार अपनाया हमारा क्यूँ नहीं...
दिल में ऐसे झख्म ले कर,
हो रहे रुख्सत अकेले हम नहीं,
प्यार में मिलते हैं अक्सर,
गम तो सबको उनसे बचा कोई नहीं..
कुचले जज्बातों सी सिसके,
है हमारी दास्ताँ उनकी नहीं,
ख़त्म हो जायेगा सब कल,
याद फिर हम आयें नहीं...

दुआ करता हूँ


"खुदा से दुआ करता हूँ, उम्र मेरी लगे मेरे यार को,
मुबारक इस मौके पर यही निशानी दे रहा हूँ यार को,
कि मरकर भी जो खत्म न हो,
सच्चा ही वो प्यार तो,
गैर न सही, मेरा यार तो,
याद करेगा मेरे प्यार को,
डोली होगी उसकी रुखसत और जनाजा मेरा तो,
फर्क फ़क़त इतना ही होगा,
उसे मिलेंगी खुशियाँ सारी,
हम मिलेंगे खाक को"

आज हमारे देश की हालत तो देखिए जरा


आज हमारे देश की हालत तो देखिए जरा,
कोई राम के नाम पर वोट मांगता,
कोई आरक्षण के नाम पर,
किन कारणों से बंट रहा है देश,
कौन है जो चाहता हम हों मटियामेट,
ये देखिए और सोचिये तो जरा.....
कभी मंदिर निर्माण, तो कभी आरक्षण के बारे में,
सोचिये तो जरा,
आज हमारे देश की हालत तो देखिए जरा....
इन नेताओं के कारण, देश का हो रहा है बंटाधार,
पहले देश चोटी पर था, अब है हाल बेहाल,
अगर मारना है भूत-प्रेत तो,
तंत्र जाप कीजिये,
हटाना है भ्रष्ट नेताओं को तो,
कुर्सी ले लीजिये,
देश के नौजवानों सोचिए, फिर फैसला कीजिये जरा,
आज हमारे देश की हालत तो देखिए जरा....