Thursday, December 2, 2010

दुआ करता हूँ


"खुदा से दुआ करता हूँ, उम्र मेरी लगे मेरे यार को,
मुबारक इस मौके पर यही निशानी दे रहा हूँ यार को,
कि मरकर भी जो खत्म न हो,
सच्चा ही वो प्यार तो,
गैर न सही, मेरा यार तो,
याद करेगा मेरे प्यार को,
डोली होगी उसकी रुखसत और जनाजा मेरा तो,
फर्क फ़क़त इतना ही होगा,
उसे मिलेंगी खुशियाँ सारी,
हम मिलेंगे खाक को"

1 comment:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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