Friday, December 3, 2010

महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों का ये कैसा मजाक





महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों की पालना करते हुए उनके कुछ अत्यंत निकट रहे लोगों ने कुछ अवधारणायें स्थापित की, जिनका अनुसरण आज देश केविभिन्न शहरों में अनेक लोग कर रहे हैं. लेकिन उन अवधारणाओं को पूरी तरह समझे बिना जिस तरह से महात्मा बुद्ध और उनके सिद्धांतों को अपने ढंग से प्रचारित किया जा रहा है और लोगों को अधूरा ज्ञान परोस कर दिग्भ्रमित किया जा रहा है वह बड़ा ही आश्चर्यजनक है. महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित इस अवधारणाओं में से एक है कमल (lotas) के सूत्र पर आधारित अवधारणा जिसे इन अनुयायियों ने नाम दिया है "बुद्धिज्म" (Buddhism). जिस तरह गंदगी में होने के बावजूद कमल का फूल उससे ऊपर निकल कर खिलता है ठीक उसी प्रकार मनुष्य को इसमें सिखाया जाता है कि किस तरह समाज में व्याप्त गंदगी और बुराइयों से बचकर ऊपर निकला जा सकता है.

कमल के फूल को आठ शुभ प्रतीक में से एक माना गया है. इस अवधारणा से जुड़े लोग महात्मा बुद्धके कमल पर बैठे या हाथ में कमल लिए हुए रूप कि कल्पना करते हैं. इस फूल को दिल की तरह मन गया है और इसमें रंगों को भी महत्व दिया गया है. जैसे सफेद: मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता, लाल: हृदय करुणा और प्रेम, नीला (ब्लू): बुद्धि और इंद्रियों पर नियंत्रण, गुलाबी: ऐतिहासिक बुद्ध और बैंगनी: रहस्यवाद. हालाँकि कमल के सूत्र को लेकर चीन, जापान और कोरिया जहाँ सर्वाधिक अनुयायी हैं, एकमत नहीं हैं. इतिहासकारों का मानना है कि लोटस सूत्र के मूल पाठ खो गए लेकिन भिक्षु Kamarajiva द्वारा चीनी में 406 CE में किये गए एक अनुवाद को सही माना जा सकता है. मूल रूप से लोटस सूत्र संस्कृत सूत्र है या Saddharma-pundarika सूत्र, यह बौद्ध धर्म के कुछ स्कूलों में विश्वास की बात है कि सूत्र ऐतिहासिक बुद्ध के शब्द हैं. हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना सूत्र 1 या 2 शताब्दी CE में लिखा गया था.

"लोटस सूत्र " की अवधारणा को किसी भी धर्म का कोई भी महिला, पुरुष, लड़का, लड़की अपना सकता है. इसमें कोई बुराई भी नहीं कि अगर किसी माध्यम से सब एकत्र और संगठित होते हैं तो, लेकिन "लोटस सूत्र " की इस अवधारणा का अनुसरण करने वाले अनुयाईयों ने अपने खुद के नियम बना रखे हैं. साथ ही इसे प्रचारित करने और इसमें लोगों का विश्वास कायम रखने के लिए झूठे उदहारण पेश किये जाते हैं. दिल्ली में इस अवधारणा का अनुसरण करने वालों ने सबके लिए अलग-अलग वर्ग समूह बना रखे हैं. जैसे महिला समूह, पुरुष समूह, लड़कों का समूह और लड़कियों का समूह. इसमें यह साफ है की अवधारणा का अनुसरण करने वाले को जिस समूह में शामिल किया गया है वह सिर्फ उसी समूह में इस अवधारणा से सम्बंधित गतिविधियों को अंजाम दे सकेगा. दूसरे समूह से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होगा. इसी प्रकार जो जिस समूह से सम्बंधित है वह अपने समूह के सदस्यों को ही एक्टिविटी के लिए अपने घर बुला सकेगा या उनके घर जा सकेगा और उसका भी समय पहले से निर्धारित होगा. हर माह दो बार समूह की सामूहिक बैठक होंगी, जिसमें चर्चा के साथ ही इस अवधारणा का अनुसरण करने के बाद जीवन में आये परिवर्तन के अनुभव को बताया जाता है और ये अनुभव बताते है पुराने अनुयायी. साथ ही अवधारण से जुड़े पुराने और प्रमुख लोग अनुसरण करन वालों को जीवन में सत्य बोलने, छल कपट नहीं करने, किसी को नुकसान नहीं पहुँचने, दिखावे से बचने, हिंसा व क्रोध का त्याग करने, वाणी का संयम रखने और दूसरों की भावनाओं का आदर करने की सीख भी देते हैं जो कि महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित इस अवधारणा के अनुकूल है. अनुयायी इस सबको ईमानदारी और सच्ची श्रद्धा से अपने जीवन में अमल करें यही इस अवधारणा का मूल उद्देश्य है. इन सबको अपने वास्तविक जीवन में उतार कर ही मनुष्य अपनी मंजिल तक आसानी से पहुँच सकता है. बशर्ते वह" लोटस सूत्र " की अवधारणा को सही मायनों में अपने जीवन चरित्र में जिये. इस अवधारणा का अनुसरण करने वाला यदि नियमों का उल्लंघन या मनमानी करता है तो उसे निष्काषित कर दिया जाता है, लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं.

खैर... यहाँ हम बात कर रहें हैं महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित "लोटस सूत्र " की अवधारणा का अनुसरण करने वालों की, जो किस तरह से अपने अनुसार नियम स्थापित कर महात्मा बुद्ध के सिद्धांतों से सबंधित इस महान दर्शन का मखौल उड़ा रहे हैं. एक और सवाल उठता है कि कहीं यह कोई सोची समझी साजिश तो नहीं धर्म परिवर्तन की. बिलकुल उसी तरह जैसे देश के अनेक हिस्सों में लोगों को दिग्भ्रमित कर धर्म परिवर्तन करने के कई मामले पहले भी उजागर हुए है. यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि इस अवधारणा से जुड़े लोगो को भी अपने घर में इस अवधारणा से सम्बंधित मंदिर जैसा कोई स्थान बनाने के प्रेरित किया जाता है और उसकी पालना भी कराई जाती है. साथ ही उनको कहा जाता है कि यह एक अवधारणा मात्र है कोई धर्म नहीं.

अब हम बात करेंगे कि इस अवधारणा का अनुसरण करने वाले किस कदर इस महान दर्शन का मखौल बना रहे हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं को रौंदकर कैसे उन्हें दिग्भ्रमित कर रहे हैं. दिल्ली में इस अवधारणा का अनुसरण कैसे होता है और क्या नियम अपनाये गए हैं. किन बातों पर अमल करना चाहिए यह सब ऊपर बताया जा चुका है. "लोटस सूत्र " की अवधारणा का अनुसरण जयपुर में कैसे किया जा रहा है उसको समझ कर आप खुद निर्णय करें कि महात्मा बुद्ध या किसी भी महान व्यक्ति के सिद्धांतों पर आधारित किसी भी अवधारणा का मखौल बनाना कहाँ तक उचित है? जयपुर में भी दिल्ली की तर्ज पर अलग-अलग वर्ग समूह बने हुए हैं. यहाँ भी अनुसरण करने वालों को जीवन में सत्य बोलने, छल कपट नहीं करने, किसी को नुकसान नहीं पहुँचने, दिखावे से बचने, हिंसा व क्रोध का त्याग करने, वाणी का संयम रखने और दूसरों की भावनाओं का आदर करने की सीख दी जाती है. सामूहिक बैठक भी होती हैं, जिसमें चर्चा के साथ ही इस अवधारणा का अनुसरण करने के बाद जीवन में आये परिवर्तन के अनुभव भी बताये जाते हैं, पुराने अनुयाईयों द्वारा जिनको इन बैठकों से पहले समझाया जाता है कि क्या बोलना है. इन बैठकों में जो अनुभव बताये जाते हैं वो सिर्फ काल्पनिक, सच्चाई से उनका कोई वास्ता नहीं होता. इतना ही नहीं जब मर्ज़ी हो बैठक हो जाती है. न बैठक का समय निर्धारित होता है न एक्टिविटी का, सब सुविधानुसार. एक्टिविटी के लिए कोई भी किसी के घर जा सकता है, अगर किसी अनुयायी के घरवालों को आपत्ति हो तो घर में अशांति, अनुयाईयों को इस कदर दिग्भ्रमित कर दिया जाता है कि ऐसी स्थिति में वह घर परिवार छोड़ने पर उतारू हो जाता है लेकिन "लोटस सूत्र " नहीं. यह बात सिद्ध की जा सकती है.

इसके अलावा पुरुष या लड़का किसी अन्य महिला या लड़की के साथ जाकर किसी तीसरे अनुयायी के घर एक्टिविटी कर सकता है. मन में आये जब कहीं भी एक्टिविटी कर सकता है चाहे दो मिनट और चाहे तो दो घंटे. सामूहिक बैठक की तैयारियों के नाम पर अनेक बैठक होती हैं जिसमें पुराने अनुयाईयों को ये बताया जाता है कि उन्हें अपने अनुभव के नाम पर क्या बोलना है. वो भी सिर्फ काल्पनिक और सच्चाई से परे. यहाँ अनेक अनुयायी ऐसे हैं जिनको दो साल से अधिक हो गए इस अवधारणा का अनुसरण करते, लेकिन आज तक उन्होंने सत्य बोलने, छल कपट नहीं करने, किसी को नुकसान नहीं पहुँचने, दिखावे से बचने, हिंसा व क्रोध का त्याग करने, वाणी का संयम रखने और दूसरों की भावनाओं का आदर करने जैसी किसी भी बात को अपने जीवन में नहीं उतारा है, ऐसे लोगों के लिए इस अवधारणा को प्रचारित व प्रसारित करने वालों के पास शायद ही कोई जवाब होगा, इतना ही नहीं ऐसे लोगों को ही किसी समूह का प्रमुख बनाया जाता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज हर धर्म व समाज मीडिया से नजदीकियां चाहता है तो फिर "लोटस सूत्र " से जुड़े लोग क्यों मीडिया या आम लोगों से बात करने में कतराते हैं. सबसे बड़ी बात कि इस अवधारणा में अधिकतर ऐसे लोगो को जोड़ा जाता है जो आर्थिक, मानसिक या शारीरिक रूप से से कमजोर हों. उन्हें बताया जाता है कि इस अवधारणा से जुड़ने के बाद उनकी ये सब परेशानी दूर हो जाएगी, लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है. सवाल यह उठता है कि किसी एक ही अवधारणा को अनुसरण करने के लिए अलग-अलग नियम क्यों? क्यों मीडिया और आम लोगों से कतराते हैं? क्यों ऐसे लोग आज भी समूह प्रमुख बने हुए हैं जिन्होंने आज तक अवधारणा के किसी भी तौर-तरीकों को नहीं अपनाया? क्या ये लोगों का धर्म परिवर्तन करवाने की पहल है? या फिर इस सबके कारण किसी का घर बर्बाद हो? इन सब सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. खुद इस अवधारणा से जुड़े ज्ञाताओं के पास भी नहीं.

( यह लेख "लोटस सूत्र " की अवधारणा से जुडी एक समूह प्रमुख द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है, उनका खुद का मानना है कि स्वयं उनके जीवन में कुछ नहीं बदला, लेकिन दिखावे के लिए कहना पड़ता है कि इस अवधारणा को अपनाने के बाद उनको बहुत फायदा हुआ और वह इसको छोड़ना चाहती हैं क्योंकि इसके कारण उनको जीवन में बहुत कुछ खोना पड़ा, लेकिन छोड़ने पर अनेक प्रकार की बातें हो सकती जो उनके निजी जीवन से जुडी हैं और जिसके बारे में वह इस अवधारणा से जुड़े अपने वरिष्ठ लोगों से कई बार चर्चा कर चुकी हैं, जो वह नहीं चाहती )

3 comments:

  1. बहुत ही अच्छा प्रश्न है I आज की जीवन शैली के तेजी से बदलते मौका परिस्थी समाज व् उनके नियम भी बरसात के बादलों के तरह अपनी दिशा व् रंग बालने में निपुणता हांसिल कर रहे है और आनंदित भी I

    अब ये हमारे आचार विचार, संस्कार, प्रवत्ति व् सिद्धांतों पर निर्भर करता है की महत्मा बुध्द जी के मार्ग दर्शन को सही मायने में क्या समझे, कैसे अपनी जीवन में उतारें व् औरों को क्या मार्ग दर्शन करें ?

    आज आवश्यकता है जीवन में घोले जारहे जहरों से बचने के लिए सही मार्ग व् उपाय निकालने की I विदेशों द्वारा चलाया जा रहा परोक्छ युद्ध I

    (१) भ्रष्टता, (२)आतंकवाद (३), लिस्बिन व् गे कल्चर (४) लिव-इन रिलेशनशिप (५)माता-पिता को बुढापे में उचित आदर न करके ब्रधा आश्रमों में धकेल देना (६)अंग प्रदर्शन की होड़ (७) पर्दा प्रथा की आड़ से बिकनी तक का सफ़र, आदि-आदि

    आज हमारी सभ्यता, संस्क्रती, व्य्व्हार्किता, पारवारिक संगठन एवेम आत्मिक प्रेमोल्लास का वातावरण ही नही वरण सम्पूर्ण समाज खतरे में है I यदि हम सब इस परोक्छ युद्ध स सतर्क न हुए व् अपनी संतानों को आगाह न किया तो पता नही इसका परिणाम हमें कहाँ ले जाएगा ? अतह अपनी धरोहर को बचाना ही होगा I हम सुधरेंगे जग सुधरेगा, हम बदलेगने जग बदलेगा को सार्थक करें I

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  2. बहुत ही अच्छा प्रश्न है I आज की जीवन शैली के तेजी से बदलते मौका परिस्थी समाज व् उनके नियम भी बरसात के बादलों के तरह अपनी दिशा व् रंग बालने में निपुणता हांसिल कर रहे है और आनंदित भी I

    अब ये हमारे आचार विचार, संस्कार, प्रवत्ति व् सिद्धांतों पर निर्भर करता है की महत्मा बुध्द जी के मार्ग दर्शन को सही मायने में क्या समझे, कैसे अपनी जीवन में उतारें व् औरों को क्या मार्ग दर्शन करें ?

    आज आवश्यकता है जीवन में घोले जारहे जहरों से बचने के लिए सही मार्ग व् उपाय निकालने की I विदेशों द्वारा चलाया जा रहा परोक्छ युद्ध I

    (१) भ्रष्टता, (२)आतंकवाद (३), लिस्बिन व् गे कल्चर (४) लिव-इन रिलेशनशिप (५)माता-पिता को बुढापे में उचित आदर न करके ब्रधा आश्रमों में धकेल देना (६)अंग प्रदर्शन की होड़ (७) पर्दा प्रथा की आड़ से बिकनी तक का सफ़र, आदि-आदि

    आज हमारी सभ्यता, संस्क्रती, व्य्व्हार्किता, पारवारिक संगठन एवेम आत्मिक प्रेमोल्लास का वातावरण ही नही वरण सम्पूर्ण समाज खतरे में है I यदि हम सब इस परोक्छ युद्ध स सतर्क न हुए व् अपनी संतानों को आगाह न किया तो पता नही इसका परिणाम हमें कहाँ ले जाएगा ? अतह अपनी धरोहर को बचाना ही होगा I हम सुधरेंगे जग सुधरेगा, हम बदलेगने जग बदलेगा को सार्थक करें I

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  3. thankx dubey ji, bahut achchi baat kahi, apni dhrohar aur saskriti ko bachne ki disha main ye ek prayas hai.

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